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Showing posts from April, 2018

Beatiful sayari

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झूठ कहते हैं लोग की दिल से निकली आवाज़ दिल तक जाती है मगर हमने तो अकसर ऐसी आवाजों को राहों में दम तोड़ते देखा है ।

उल्फ़त

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हरीफ़ हजारों मिलेंगे इस हयात में, अहबाब मिलेंगे किन्तु अफ्सूँ में। उल्फ़त में शामिल कोई खास होगा, मगर महरूम में दाखिल सारा दयार होगा।

कला

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कला;-किसी के लिए अथाह गहराई, किसी ने सिर्फ दीवार सजाई। कलाकार की बनायी एक शाहकार, इल्म समेटें थी अपार। उस कृति के पीछे  थी रहनुमा एक, हम ने घड़ डाली कथाएँ अनेक। माना उस कलाकार की सोच से ना वाकिफ हो पाए, किन्तु अपनी सोच के दायरे को तो पहचान पाए। हर बार बदली तो नहीं थी वो कलाकृति, मगर मति पर निर्भर थी उसकी खूबसूरती।

बात कुछ ओर होती

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नयनों से ही होती हर बात, तो अल्फ़ाज़ों की जरूरत कहाँ होती। बिन बोले ही सब पढ़ लेते हम, होता अगर ऐसा  तो बात कुछ ओर होती। प्रकृति से जोड़ के रखते हम रिश्ता, पेड़ों की सम्हाल हमारे हाथों होती। नदियाँ,झरने व हवा निर्मलता झलकाती, होता अगर ऐसा  तो बात कुछ ओर होती। धर्म के नाम पर राजनीति ना हम करते, समानता हर एक इंसान को मिलती। सिर्फ बातों में नहीं हकीकत में बदलाव होता, होता अगर ऐसा तो बात कुछ ओर होती। गुजरा वक्त यदि फिर लौटता, उन पलों की खुशियाँ फिर जी जाती। तो यादों के सहारे की जरुरत कहाँ होती, होता अगर ऐसा तो बात कुछ ओर होती।

सीख(दर्स)

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आबशार का आब भी कहाँ बुझा सका.... फुर्कु़त से उठी इस आतिश को। आब-ए-चश्म ने बन हम-नफ़स आब से.... समेट लिया हयात से मिले हर दर्स को।

फितरत

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मयूर पंखों से हो चाहे लाख खूबसूरत, किन्तु इससे ना बदली कीट भक्षण की फितरत। यूँ ही इंसान चाहे लाख सजाए अपना तन, किन्तु इससे कभी ना बदले उसका मन।

तर्ज

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देख अश्क अश्क़िया असद भी भूला दे तनी, पर अफसोस हर दास्ताँ इस तर्ज पर ना बनी।