नयनों से ही होती हर बात,
तो अल्फ़ाज़ों की जरूरत कहाँ होती।
बिन बोले ही सब पढ़ लेते हम,
होता अगर ऐसा तो बात कुछ ओर होती।
प्रकृति से जोड़ के रखते हम रिश्ता,
पेड़ों की सम्हाल हमारे हाथों होती।
नदियाँ,झरने व हवा निर्मलता झलकाती,
होता अगर ऐसा तो बात कुछ ओर होती।
धर्म के नाम पर राजनीति ना हम करते,
समानता हर एक इंसान को मिलती।
सिर्फ बातों में नहीं हकीकत में बदलाव होता,
होता अगर ऐसा तो बात कुछ ओर होती।
गुजरा वक्त यदि फिर लौटता,
उन पलों की खुशियाँ फिर जी जाती।
तो यादों के सहारे की जरुरत कहाँ होती,
होता अगर ऐसा तो बात कुछ ओर होती।
वाकई होता अगर ऐसा बात कुछ और होती..बहुत अच्छी पंक्तियां
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