जिंदगी ...थक गई हूँ मैं।
अब बस भी कर जिंदगी , थम जा..... थक गई हूँ अब... तुझ संग चलते-चलते, थक गई हूँ अब... इन नकली चेहरों के पीछे छिपते -छिपते, थक गई हूँ अब... इन नाम मात्र के बचे रिश्तों को जोड़ते-जोड़ते, थक गई हूँ अब... दुनिया के बनाए इन खोखले नियमों को अपनाते-अपनाते, थक गई हूँ अब... खुद से ही यूँ झुठ बोलते-बोलते, थक गई हूँ अब... दिखावे के लिए ही मुस्काते -मुस्काते, थक गई हूँ अब... बेवजह की इन ख्वाहिशों का बोझ उठाते-उठाते, थक गई हूँ अब... इंसानों के मुताबिक़ ही इंसान बनते-बनते, थक गई हूँ अब... बेमतलब का ये जीवन जीते -जीते, अब बस भी कर जिंदगी, थम जा... थक गई हूँ मैं।
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