आज जा के मैं प्रकृति से घुली,
साथ ही चेहरे पे मुस्कान खिली,
सूरज की सुनहरी अंशु मिली,
हिम भी अब जरा सी पिघली,
मंद सी पवन भी छू के निकली,
वट की भी मन मोहन थी हरियाली,
प्रकृति की गोद में कुछ यूँ था मेरा आज का सवेरा।
झरनों और नदियों का कलकलाना,
चिड़ियों की सुबह का चहचहाना,
मोर का यूँ मदमस्त हो नाचना,
पंछियों का यूँ आसमान में उड़ना,
पुष्पों की सुगन्ध का सब ओर बिखरना,
ओस की बूँदों का हीरे सा चमकना,
प्रकृति की गोद में कुछ यूँ था मेरा आज का सवेरा।
इस अनुभव ने दे डाली अनेक सीख,
हवा व जल सी निरन्तर गति की सीख,
बिना आशा वृक्षों जैसे त्याग की सीख,
फूलों की मोहक खुशबू जैसी खुशियाँ बिखेरने की सीख,
सूर्य समान काज सम्पूर्ण निष्ठा से करने की सीख,
नभ और भू का मिलकर हमें जीवन दान की सीख,
प्रकृति की गोद में कुछ यूँ था मेरा आज का सवेरा।
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