अब बस भी कर जिंदगी , थम जा..... थक गई हूँ अब... तुझ संग चलते-चलते, थक गई हूँ अब... इन नकली चेहरों के पीछे छिपते -छिपते, थक गई हूँ अब... इन नाम मात्र के बचे रिश्तों को जोड़ते-जोड़ते, थक गई हूँ अब... दुनिया के बनाए इन खोखले नियमों को अपनाते-अपनाते, थक गई हूँ अब... खुद से ही यूँ झुठ बोलते-बोलते, थक गई हूँ अब... दिखावे के लिए ही मुस्काते -मुस्काते, थक गई हूँ अब... बेवजह की इन ख्वाहिशों का बोझ उठाते-उठाते, थक गई हूँ अब... इंसानों के मुताबिक़ ही इंसान बनते-बनते, थक गई हूँ अब... बेमतलब का ये जीवन जीते -जीते, अब बस भी कर जिंदगी, थम जा... थक गई हूँ मैं।
आज जा के मैं प्रकृति से घुली, साथ ही चेहरे पे मुस्कान खिली, सूरज की सुनहरी अंशु मिली, हिम भी अब जरा सी पिघली, मंद सी पवन भी छू के निकली, वट की भी मन मोहन थी हरियाली, प्रकृति की गोद में कुछ यूँ था मेरा आज का सवेरा। झरनों और नदियों का कलकलाना, चिड़ियों की सुबह का चहचहाना, मोर का यूँ मदमस्त हो नाचना, पंछियों का यूँ आसमान में उड़ना, पुष्पों की सुगन्ध का सब ओर बिखरना, ओस की बूँदों का हीरे सा चमकना, प्रकृति की गोद में कुछ यूँ था मेरा आज का सवेरा। इस अनुभव ने दे डाली अनेक सीख, हवा व जल सी निरन्तर गति की सीख, बिना आशा वृक्षों जैसे त्याग की सीख, फूलों की मोहक खुशबू जैसी खुशियाँ बिखेरने की सीख, सूर्य समान काज सम्पूर्ण निष्ठा से करने की सीख, नभ और भू का मिलकर हमें जीवन दान की सीख, प्रकृति की गोद में कुछ यूँ था मेरा आज का सवेरा।
मेरा ये सलाम,उन लोगों के लिए हैं, जो खुद तनिक से दर्द पर तड़प जाते हैं, किन्तु किसी जानवर का गोश्त बड़े मजे से खाते हैं, जो उन बेजबान की कराहट और दर्द से बेपरवाह हैं, और जिनका जीवन सिर्फ शौक़ पूर्ति के लिए ही हैं। मेरा ये सलाम, उन मनचलों के लिए हैं, जो खुद तो एक छोटे से व्यंग से ही तिलमिला उठते हैं, किन्तु किसी राह चलती लड़की पर फबतीं बड़ी आसानी से कसते हैं, उनकी भावनाओं को तोड़,चैन तब ही पाते हैं, जब ये महसूस करा दे कि उसने शायद बाहर कदम रख कोई गुनाह किया है। मेरा ये सलाम,हमारी इस नव पीढ़ी के उन युवाओं के लिए है, जिनके लिए खूबसूरती के मायने सिर्फ दमकते व सजावटी चेहरे से है, जिनके लिए व्यक्तित्व सिर्फ पहनावा व बोलने का तरीका ही है, जिनके लिए दोस्ती के मायने सिर्फ कोरे दिखावे तक ही सीमित है, जिनके लिए सिर्फ नकली मुखौटे पहने चेहरे और पैसा ही दुनिया है। मेरा ये सलाम,उन दहेज लोभीयों के लिए है, जिनकी दहेज माँगते वक्त जुबान जरा सी भी नहीं अटकती है, किन्तु जब स्वयं दहेज देने की बारी आती है, तब हमारे समाज में फैली दहेज प्रथा की निन्दा शुरु कर देते हैं, कैसे ...
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