कला;-किसी के लिए अथाह गहराई,
किसी ने सिर्फ दीवार सजाई।
कलाकार की बनायी एक शाहकार,
इल्म समेटें थी अपार।
उस कृति के पीछे थी रहनुमा एक,
हम ने घड़ डाली कथाएँ अनेक।
माना उस कलाकार की सोच से ना वाकिफ हो पाए,
किन्तु अपनी सोच के दायरे को तो पहचान पाए।
हर बार बदली तो नहीं थी वो कलाकृति,
मगर मति पर निर्भर थी उसकी खूबसूरती।
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