कहने को बहुत है, बस जुबां से निकलना बाकी है।
कागज पर उतरना बहुत है ,बस कलम से निकलना बाकी है।।
दोस्ती का हाथ बढ़ा तो दूँ,बस कुछ इंतकाम बाकी है।
माफ तुझे कर तो दूँ,बस कुछ कड़वाहट बाकी है।।
उम्मीदों का सवेरा होने को है,बस ये निराशा का अंधेरा बाकी है।
मंजिल सामने इंतजार में है,बस कुछ प्रयास बाकी है।।
भाईचारे की भावना तो है,बस ये मजहब का भेदभाव बाकी है।
समानता तो है हर इंसान में,बस कुछ द्वेष बाकी है।।
दुनिया को समझ ही लूँगी मैं,बस कुछ इम्तिहान बाकी है।
चलने को रास्ते बहुत है,बस सही का चुनाव बाकी है।।
प्रेम को समझ तो गई हूँ,बस तेरी भक्ति बाकी है।
विश्वास तो है तुझ में,बस सच्ची श्रद्धा बाकी है।।
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