तूने कहानी लिखी,अच्छी तो लिखता।
चित्र बनाया,उसमें रंग तो देता।
सृष्टि तो बनायी,पर इंसान क्यों बनाया?
जब इंसान बनाया,तो ढंग का तो बनाता।
ये कैसा बना दिया?,जो दानव ही है।
जो धर्म और जात-पात पे ही अड़ा है।
जो आडंबरों में ही फसा है।
जो किसी जान की कद्र भी नहीं जानता।
जो तेरी बनायी हर वस्तु की तौहीन ही करता है।
प्रेम,करुणा,ममता,दया,हर्ष का भाव तो तूने बनाया।
पर क्रोध,लोभ,मोह,द्वेष,ईर्ष्या को क्यों बनाया?
तूने हद्वय तो दिया पर निर्मल क्यों नहीं?
बिन जरूरत तो हम तेरे सामने भी नहीं झुकते।
पर तेरे नाम का सहारा ले दंगों में जान जरुर लेते हैं।
तूने हमें बनाया,पर हम तो तुझे भी चुनौती दे रहें हैं।
तू तो भगवान है ना,सब देख सकता है।
तो कर ना कोई चमत्कार,दे ना सबको सद्बुद्धि।
सभी की तकदीर तूने लिखी है,तो सबको खुशियाँ ही दे।
हर चेहरे पर मुस्कराहट का तोहफा ही दे।
किसी से जीने की वजह ना छिन।
अगर दर्द दे तो सहने की ताकत भी तो दे।
कर रहम अपने हर बच्चे पर,दे शुद्ध और पाक सा मन।
शांति,अमन और सुकून का वरदान,कर दे सबको प्रदान।
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