कहानी है ये छोटे से बच्चे के नन्हे से मन और उसके नन्हे दिमाग की।नन्हा मन बडा चंचल था।अभी वो इस दुनिया से अनजाना था।पर दिमाग बिल्कुल उससे विपरीत।मन जब किसी बात के लिए हठ करता तब मस्तिष्क उसे समझाता की अभी थोड़ा ठहरो और समझो।पर वो नन्हा मन कहाँ मानने वाला था।बस अपनी मर्जी से हर कार्य करता।उसे मस्तिष्क का यूँ टोकना कदापि ना भाता।
थोड़े ही समय में सच मन के सामने था।उसने जो चीजें जरूरी समझी,जिनको दोस्त माना वो सब चीजें झूठ निकली।मन बिल्कुल उदास हो उठा।उस समय मस्तिष्क ने उसका साथ दिया।
मस्तिष्क ने जैसा बोला,मन ने वैसे ही सब काम करना शुरु किया और वो नन्हा सा बालक फिर से खिल उठा। अब उसने इस संसार को बखूबी जान लिया था।मन और मस्तिष्क को भी पता चल चुका था कि वे दोनों ही सच्चे मित्र थे और हर इंसान के पीछे इन्हीं दोनों का बेहद अहम रोल।
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