Beatiful sayari

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झूठ कहते हैं लोग की दिल से निकली आवाज़ दिल तक जाती है मगर हमने तो अकसर ऐसी आवाजों को राहों में दम तोड़ते देखा है ।

समय और यादों का सम्बन्ध

सब कहते हैं कि समय के साथ इंसान सब पुरानी यादों को भूल ही जाता है।क्या ये सत्य है? क्या वास्तव में हम भूल पाते हैं? आपका मुझे पता नहीं,यदि मुझ से जवाब माँगा जाए तो नहीं। कभी भी नहीं।
आज से लगभग १२ साल पुरानी बात है,जब मैं   भी स्कूल के नादान बच्चों  वाली उम्र में ही थी।घर में एक नए मेहमान की दस्तक हुई;-एक नन्हा और मासूम सा पिल्ला। बाकी सब बच्चों की तरह मुझे और छोटे भाई को भी बहुत अच्छा लगता था;-उसके साथ खेलना,उसे थोडे़-थोड़े अन्तराल उपरान्त देखना,उसका खयाल रखना , उसकी हर छोटी-छोटी जरूरतों का ध्यान रखना।लेकिन ये सब बहुत ज्यादा दिन ना चल सका।कुछ दिन के अन्दर ही उसकी मौत हो गई और शायद वजह थी हमारी छोटी सी लापरवाही।
जिस पिंजरे को उसकी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता था,उसी से लगी चोट उस मासूम की इस दुनिया से जाने की वजह बनी।बहुत कोशिश की उसे बचाने की पर कामयाब ना हुए।
आज इतना समय गुजर जाने के बाद भी ये सब जहन में जिंदा हैं। वो दृश्य आज भी आँखों के सामने उसी दिन की तरह जीवित है।उसकी वो दर्द में कराहट मैं आज भी वैसे ही सुन सकती हुँ।तो क्या हम कह सकते हैं कि वक्त सब भुला देता है? और अगर हाँ ,तो मेरे साथ ऐसा क्यों नहीं?
इस दुनिया में देखा है और सुना भी है कि लोग रिश्ते,बातें, इंसानों तक को भूल जाने तक की शक्ति रखते हैं। या तो ये सब झुठ और नाटक ही है और यदि ऐसा नहीं तो क्यो रब ने ये भूलने वाली शक्ति सब में एक समान नहीं दी? इन सब सवालों के जवाब मुझे तो नहीं मिले।यदि आप सबको पता है तो बताइए।यदि आपको भी नहीं मिला कोई सही जवाब तो लग जाइए ,खोजने में।

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