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Showing posts from February, 2018

Beatiful sayari

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झूठ कहते हैं लोग की दिल से निकली आवाज़ दिल तक जाती है मगर हमने तो अकसर ऐसी आवाजों को राहों में दम तोड़ते देखा है ।

तलाश

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जिंदगी चंद वर्षों का सफर, गुजर गया बस तलाश में। अँधेरे में उजाले की तलाश, गहरी धूप में छांव की तलाश, बढ़ती भूख में भोजन की तलाश, प्यास  में जल की तलाश, इस जमीं पर सुरक्षा की तलाश, समुद्र में होकर तट की तलाश, रेगिस्तान में आब की तलाश, भाव बयां के लिए अल्फ़ाज़ों की तलाश, रोग के इलाज में दवा की तलाश, चोट के घावों में मरहम की तलाश, अजनबीयों में किसी अपने की तलाश, गुमनाम जिंदगी में पहचान की तलाश, प्रदूषित हवा में स्वच्छता की तलाश, भागमभाग में सुकून की तलाश, इम्तिहान में कामयाबी की तलाश, नौकरी में उन्नति की तलाश, भक्ति में भगवान की तलाश, नफरत में प्यार की तलाश, बेईमानी में ईमानदारी की तलाश, फरेब में सच्चाई की तलाश, बुराई में अच्छाई की तलाश, उदासी में मुस्कुराहट की तलाश। निकल गई ये जिंदगी खुद की ही तलाश में, कुछ लोगों ने पायी कामयाबी इस तलाश में, कुछ खुद ही खो गए इस तलाश में, आखिरी वक्त देखा तो उम्र यूँ ही गई तलाश में, जिंदगी चंद वर्षों का सफर, गुजर गया बस तलाश में।।

समय और यादों का सम्बन्ध

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सब कहते हैं कि समय के साथ इंसान सब पुरानी यादों को भूल ही जाता है।क्या ये सत्य है? क्या वास्तव में हम भूल पाते हैं? आपका मुझे पता नहीं,यदि मुझ से जवाब माँगा जाए तो नहीं। कभी भी नहीं। आज से लगभग १२ साल पुरानी बात है,जब मैं   भी स्कूल के नादान बच्चों  वाली उम्र में ही थी।घर में एक नए मेहमान की दस्तक हुई;-एक नन्हा और मासूम सा पिल्ला। बाकी सब बच्चों की तरह मुझे और छोटे भाई को भी बहुत अच्छा लगता था;-उसके साथ खेलना,उसे थोडे़-थोड़े अन्तराल उपरान्त देखना,उसका खयाल रखना , उसकी हर छोटी-छोटी जरूरतों का ध्यान रखना।लेकिन ये सब बहुत ज्यादा दिन ना चल सका।कुछ दिन के अन्दर ही उसकी मौत हो गई और शायद वजह थी हमारी छोटी सी लापरवाही। जिस पिंजरे को उसकी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता था,उसी से लगी चोट उस मासूम की इस दुनिया से जाने की वजह बनी।बहुत कोशिश की उसे बचाने की पर कामयाब ना हुए। आज इतना समय गुजर जाने के बाद भी ये सब जहन में जिंदा हैं। वो दृश्य आज भी आँखों के सामने उसी दिन की तरह जीवित है।उसकी वो दर्द में कराहट मैं आज भी वैसे ही सुन सकती हुँ।तो क्या हम कह सकते हैं क...

आज का सवेरा

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आज जा के मैं प्रकृति से घुली, साथ ही चेहरे पे मुस्कान खिली, सूरज की सुनहरी अंशु मिली, हिम भी अब जरा सी पिघली, मंद सी पवन भी छू के निकली, वट की भी मन मोहन थी हरियाली, प्रकृति की गोद में कुछ यूँ था मेरा आज का सवेरा। झरनों और नदियों का कलकलाना, चिड़ियों की सुबह का चहचहाना, मोर का यूँ मदमस्त हो नाचना, पंछियों का यूँ आसमान में उड़ना, पुष्पों की सुगन्ध का सब ओर बिखरना, ओस की बूँदों का हीरे सा चमकना, प्रकृति की गोद में कुछ यूँ था मेरा आज का सवेरा। इस अनुभव ने दे डाली अनेक सीख, हवा व जल सी निरन्तर गति की सीख, बिना आशा वृक्षों जैसे त्याग की सीख, फूलों की मोहक खुशबू जैसी खुशियाँ बिखेरने की सीख, सूर्य समान काज सम्पूर्ण निष्ठा से करने की सीख, नभ और भू का मिलकर हमें जीवन दान की सीख, प्रकृति की गोद में कुछ यूँ था मेरा आज का सवेरा।

मन और मस्तिष्क की दोस्ती

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कहानी है ये छोटे से बच्चे के नन्हे से मन और उसके नन्हे दिमाग की।नन्हा मन बडा चंचल था।अभी वो इस दुनिया से अनजाना था।पर दिमाग बिल्कुल उससे विपरीत।मन जब किसी बात के लिए हठ करता तब मस्तिष्क उसे समझाता की अभी थोड़ा ठहरो और समझो।पर वो नन्हा मन कहाँ मानने वाला था।बस अपनी मर्जी से हर कार्य करता।उसे मस्तिष्क का यूँ टोकना कदापि ना भाता। थोड़े ही समय में सच मन के सामने था।उसने जो चीजें जरूरी समझी,जिनको दोस्त माना वो सब चीजें झूठ निकली।मन बिल्कुल उदास हो उठा।उस समय मस्तिष्क ने उसका साथ दिया। मस्तिष्क ने जैसा बोला,मन ने वैसे ही सब काम करना शुरु किया और वो नन्हा सा बालक फिर से खिल उठा। अब उसने इस संसार को बखूबी जान लिया था।मन और मस्तिष्क को भी पता चल चुका था कि वे दोनों ही सच्चे मित्र थे और हर इंसान के पीछे इन्हीं दोनों का बेहद अहम रोल।